Sunday, December 5, 2010

Us Kinare Pe

उस किनारे पे डूब गए, जिसपे मंजिल का ठिकाना था,
गम ही क्या था, एक दिन, डूब ही जाना था!

ज़िन्दगी की कलम मैं श्याही तो नीली थी,

पन्नो को लाल रंग पसंद था!

मेरी मंजिल जो लहरों से घिरी थी,
उसे भी मुझ्से से टकराना तो था!

उस तूफ़ान मैं मिट जाता, गर तुझसे मिल पाता,
मंजिल के तूफानों का खोफ कहा था,
बस!
मंजिल पे डूब जाना था.

वक़्त से निकले अंधेरों ने, तुफानो ने खूब झंझोरा-रोका,
पर!
कहा रुकता ये दिल, हर कतरा तो इसके लिए सोना था!

ये सफ़र ख़तम होगा, मालूम तो था,
पर रुक जायेगा ये कहा मालूम था,
किनारे पे आकर डूबना जो था!

दरिया तो पार नज़र ही कर लेती,
पर इन आँखों को भी तो सोना था.

शायद, उस किनारे पे मेरी कश्ती को किसीसे से मिलना था,
मंजिल तक पहुचना तो एक बहाना था!
यारी आखिर तूफानो से मिली,
जो थके आँखों के लिए नींद का जाल बुन गया.

उस मंजिल पे डूबते हुए भी तुझे देखा हैं,
इस तूफ़ान से पूछ ले,
मेरा रास्ता तो उजालो मैं था,
पर तू ही अंधेरो मैं डूबा हुवा था,
तुझे ही लेने के लिए, ये सफ़र चला था,
क्या था उस मंजिल मैं जिसमे तू मगरूर छुपा था!

रहा तड़पता और लड़ता तेरे लिए, इन अंधेरो से,
उजाला तुझे मिल सके इसलिए, एक दिन मुझे जलना तो था,
मुझे क्या मालूम था, तुझसे लड़ना था.

डूब गया किनारे पे,
साथ मेरा कश्ती ने दिया, लड़ा - तूफानों से लहरों से,
क्या ये कम था!

क्या हैसियत थी उस मंजिल की,
जो दो कदम मुझ तक चल न सका,
किनारे पे मुझे डूबता देख, खुद भी डूब गया.



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